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________________ अध्याय स०रा० भाषा ५०१ सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयाभावी क्षय रहनेपर तथा सचामें उपशम रहनेपर, प्रत्याख्यानकषायके उदय रहनेपर देशघाती संज्वलन कषायरूप स्पर्धकोंके उदय रहनेपर एवं उक्त नव नोकषायोंके यथासंभव उदय रहनेपर आत्माका कुछ विरत कुछ अविरत मिश्ररूप जो परिणाम है वह संयमासंयम नामका |क्षायोपशामिक भाव है । शंका-- सज्ञित्वसम्यग्मिथ्यात्वयोगोपसंख्यानमिति चेन्न ज्ञानसम्यक्त्वलब्धिगृहणेन गृहीतत्वात् ॥९॥ उस उस कर्मके क्षय और उपशमसे जो भाव होते हैं वे क्षायोपशामिक भाव कहे जाते हैं। क्षायो|| पशमिक भावके मतिज्ञान आदि अठारह भेद सूत्रकारने वतलाये हैं परंतु कर्मोंके क्षय और उपशमसे | 18|| संज्ञित्व सम्यग्मिथ्यात्व और योग भी होते हैं इसलिये क्षायोपशमिक भाव होनेसे इनका भी सूत्रमें उल्लेख | त करना चाहिये ? सो ठीक नहीं। मतिज्ञान आदि जो शायोपशमिक भावके भेद कहे गये हैं उन्हींमें संज्ञित्व 18 हूँ आदिका अंतर्भाव हो जाता है और वह इसप्रकार है--.. संज्ञित्वका अर्थ मन विशिष्टपना है । जिस मतिज्ञानमें नोइंद्रियावरण कर्मके क्षयोपशमकी अपेक्षा रहेगी उस मतिज्ञानमें संज्ञित्व भावका समावेश है। पंचेंद्रिय सैनी जीवके जो मतिज्ञान होगा उसमें नो । | इंद्रियावरण कर्मके क्षयोपशमकी अपेक्षा है इसलिये सैनी पंचेंद्रियके मतिज्ञानमें संज्ञित्वका अंतर्भाव है । || संज्ञित्वभावके जुदे गिनानेकी कोई आवश्यकता नहीं। सूत्रमें जो सम्यक्त्व नामका क्षायोपशमिक भाव || 18|| गिनाया गया है उसमें सम्यग्मिथ्यात्व भावका समावेश है क्योंकि जिसप्रकार जलविशिष्ट भी दूधका || संसारमें 'दूध' व्यवहार प्रसिद्ध है अर्थात् मिले हुए भी दोनों पदार्थोंमें दूधका ही ग्रहण होता है उसी | प्रकार सम्यक्त्व और मिथ्यात्व दोनोंका मिश्ररूप पदार्थ सम्यग्मिथ्यात्व है इसका भी सम्यक्त्वके नामसे AUCAREECRESERECARBAREGUAGOISTRURES PSISRBANARASNA ५१ PURE
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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