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________________ तश मावा अध्याय अर्थ ज्ञान है । 'परद्रव्यहरणादिषु सत्युपालभे प्रत्ययोऽनेन कृतः परद्रव्यके चोरी आदि हो जानेपर जब | इस पुरुषको उलाहना दिया गया तब इसने शपथ की, यहां पर प्रत्यय शब्दका अर्थ शपथ है । 'अवि- | द्याप्रत्ययाः संस्काराः' संस्कार अविद्याकारणक हैं, यहां पर प्रत्यय शब्दका अर्थ कारण है परंतु इस ३७७ स्थान पर प्रत्यय शब्दका निमिच' अर्थ ग्रहण करना अभीष्ट है इसलिये निमिच अर्थ ही लिया गया है है। भवप्रत्ययः' अर्थात् भवकारणक है। शंका क्षयोपशमाभाव इति चेन्न तस्मिन् सति सद्भावात् खे पतत्त्रिगतिवत् ॥३॥ ___ अवधिज्ञानकी उत्पचिमें अवधिज्ञानावरण और वीयांतरायका क्षयोपशम आदि कारण माने हैं * यदि उसे भवनिमिचक माना जायगा तो कर्मोंका क्षयोपशम मानना व्यर्थ है ? सो ठीक नहीं। जिसप्र-हूँ * कार आकाशके होते पक्षियोंकी गति होती है यहाँपर गति नामकर्मका क्षयोपशम अंतरंग कारण माना है और आकाशको वाह्य कारण माना है. उसीप्रकार अवधिज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमके होने पर ही है अवधिज्ञान होता है विना उसके ज्ञान नहीं हो सकता इसलिये अवधिज्ञानावरण कर्मका क्षयोपशम अवका विज्ञानमें अंतरंग कारण है और भव पक्षियोंकेलिये आकाशके समान वाह्य कारण है । और भी यह बात है कि इतरथा ह्यविशेषप्रसंगः ॥४॥ यदि अवधिज्ञानकी उत्पचिमें भव ही कारण माना जायगा कर्मोंका क्षयोपशम कारण न माना है जायगा तो सब ही देव और नारकियोंके भव कारण समान है, इसलिये सबके एक समान अवधिज्ञान में होना चाहिये, परंतु वह किसीके कम होता है और किसीके अधिक होता है, इसलिये भवकारणक जापान AGARABARBARASHILS RECE 964 ३७७ ४८
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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