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________________ IMACHARGREACTICLESSION अवधि और मनःपर्ययज्ञान ये दो देश प्रत्यक्ष हैं और केवलज्ञान सकल प्रत्यक्ष है। 'क्षयोपशमात्मक | विशुद्धिरूंप आत्माके प्रसादको विशेषतासे जिसके द्वारा मर्यादितरूपसे पदार्थ जाने जाय वह अवधि-है ज्ञान है' यह अवधिज्ञानका स्वरूप पहिले कह दिया जा चुका है। वह अवधिज्ञान भव प्रत्यय और गुण प्रत्ययके भेदसे दो प्रकारका है अथवा देशावधि और सर्वावधि ये भी उसके दो भेद हैं। ( यदि यहाँपर | B] यह कहा जाय कि दूसरी जगह देशावधि परमावधि और सर्वांवधिके भेदसे अंवधिज्ञान तीन प्रकारका | माना है। यहां उसके देशावधि और सर्वावधि दो ही भेद किये हैं इसलिये आपसमें विरोध है ? सो नहीं। है सर्वशब्दका अर्थ संपूर्ण है.। संपूर्णमें परम शब्दका भी अंतर्भाव हो जाता है इसलिये परमावधि भी है देशावधि ही है इसरोतिसे परमावधिको देशावधि सिद्ध होनेसे अवधिज्ञानके देशावधि और सर्वावधि | दो भेद माननेमें कोई आपत्ति नहीं) अब भवप्रत्यय अवधिज्ञान के विषयमें सूत्रकार कहते हैं भवप्रत्ययोऽवधिदेवनारकाणां ॥२१॥ देव और नारकियोंके जो अवधिज्ञान होता है वह भवप्रत्यय है अर्थात् देव और नरकगतिमें जाते | ही उनके अवधिज्ञान प्रगट हो जाता है। वार्तिककार भवशब्दका अर्थ बतलाते हैं आयुर्नामकर्मोदयविशेषापादितपर्यायो भवः॥१॥ __ अन्य अविनाभावी कारणोंके साथ आयु और नाम कर्मके उदयसे आत्माके जिस पर्यायकी प्राप्ति हो वह भव कहा जाता है। यह भवका सामान्य लक्षण है। प्रत्ययशब्दस्यानेकार्थसंभवे विवक्षातो निमित्तार्थगतिः॥२॥ ३७६ ' प्रत्यय शब्दके अनेक अर्थ हैं 'अर्थाभिधानप्रत्यया पदार्थ शब्द और ज्ञान यहांपर प्रत्ययशन्दका BREGALASS-SHABADRISHABBABASAIBABAR
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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