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________________ अध्याय उपसर्ग आचार प्रतिमा विराधना आराधना विशुद्धिका कूम मुनिलिंगका कारण परिमित और अपरि- मित द्रव्य और भावोंका प्रत्याख्यान-त्याग, वर्णन किया गया है वह प्रत्याख्यान पूर्व है।जहांपर समस्त प्रकारकी विद्या आठ महानिमिच उनका विषय राजू और राशिकी विधि क्षेत्र श्रेणी लोकका आधार ॥६ संस्थान-आकार, और समुद्घातका निरूपण हो वह विद्यानुवादपूर्व है। अंगुष्ठ प्रसेना आदि सात सौ तो कल्प विद्या हैं और रोहिणी आदि पांचौ महाविद्या हैं अंतरिक्ष । भौम २ अंग ३ स्वर ४ स्वप्न ५ लक्षण ६ व्यंजन ७ और छिन्न ८ ये आठ महानिमिच हैं। इनका विषय लोक है। क्षेत्रका अर्थ आकाश है। पटके सूतोंके समान वा चामके अवयवोंके समान आनुपूर्वी कमसे ऊपर नीचे और तिर्यक् रूपसे स्थित असंख्याते आकाशके प्रदेशोंका नाम श्रेणी है। अनंत प्रदेशी अलोकाकाशके बहमध्यभागमें सुप्रतिष्ठक (ठोणा) के समान आकारवाला लोक है । वह ऊर्ध मध्य और अधोलोकके भेदसे तीन प्रकारका है । उसमें ऊर्ध्वलोक मृदंगसरीखे आकारका है । मध्यलोक वेत्रासन मृढेके आकारका है और अधोलोक झालर सरीखा है । ऊपर नीचे और तिर्यग् तीनों जगह यह लोक चारौ ओरसे तनुवातवलयसे वेष्टित है। चौदह राजू लंबा है और मेरु १ प्रतिष्ठ २ वज्र ३ वैडूर्य ४ पटल ५ अंतर ६ रुचक ७ और संस्थित ८ ये आठ लोकके मध्यप्रदेश हैं। लोकके मध्य भागसे रज्जुआक द्वारा जब ऊर्ध्व लोककी लंबाईका प्रमाण किया जाता है तब लोकके मध्य भागसे ऊपर ऐशान स्वर्ग पर्यन्त यह लोक डेढ राजू है। माहेंद्र स्वर्ग पर्यंत तीन राजू है । १ पूजा करते समय जिसमें स्थापना की जाती है उस पात्रको ठौणा बोलते हैं ठौणा शब्द स्थापना का ही अपभ्रंश है। वह पात्र लोकके आकार होता है। RECOULAMBASSISUALLEGES ३६४
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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