________________
भाषा
BAAEGORREREORGEGREGAIRECAREGAESAL
सकता। नामके जान लेनेपर ही स्वामीपना आदि धर्मों का ज्ञान होता है, विना नामज्ञानके नहीं इस. लिये सबसे पहिले सूत्रमें निर्देश शब्दका उल्लेख किया गया है।
. ' इतरेषां प्रश्नवशात्कमः॥२॥ स्वामित्व आदिका जो सूत्रमें क्रम रक्खा गया है वह प्रश्नकी अपेक्षा है । जैसा जैसा प्रश्न होता जाता है वैसा ही स्वामित्व आदिका क्रमसे उल्लेख होता चला जाता है। जिसतरह जीवका नाम जान लेने पर यह प्रश्न उठता है कि वह जीव पदार्थ क्या है ? कैसे स्वभाव और कैसे विशेषका धारक है?
औपशमिकादिभावपर्यायो जीवः पर्यायादेशात् ॥३॥ पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा औपशमिक क्षायिक आदि भावस्वरूप जीव है। 'ओपशामकक्षायिको भावो' इत्यादि सूत्रसे औपशमिक आदि भावोंका आगे जाकर स्वरूप विस्तारसे कहा जायगा।
द्रव्यार्थादेशान्नामादिः॥४॥ 'द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा जीव पदार्थ नाम आदि स्वरूप भी है।
तदुभयसंग्रहः प्रमाणं ॥५॥ द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक दोनों नयोंके अर्थको संग्रह करनेवाला-विषय करनेवाला प्रमाण है। अर्थात् प्रमाणकी अपेक्षा औपशमिक आदि भाव वा नाम आदि दोनों स्वरूप जीव पदार्थ है इसप्रकार. यह तो निर्देशके द्वारा जीवके ज्ञानका उपाय है अब स्वामित्व आदिके द्वारा कहा जाता है। वहां जीव किसका स्वामी है ? इस प्रश्नका समाधान
SABREPEASABASAHASRANA