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________________ स०रा० 18 अथवा घट आदिद्रव्योंमें प्रतिसमय नवीन नवीन पर्यायोंका उत्पाद और विनाश हुआ करता र है और उन पर्यायों की अपेक्षा पदार्थोंका भेद माना जाता है इसलिये घटकीभूत भविष्यत् वर्तमान १५७|| तीनों पर्यायोंमें ऋजुसूत्रनयकी अपेक्षा घटकी जो वर्तमान पर्याय है वह तो स्वस्वरूप है और भूत भविष्यत् पर्यायें परस्वरूप हैं। वर्तमान पर्यायकी अपेक्षा घट है । भूत और भविष्यत् पर्यायकी अपेक्षा || वह नहीं है क्योंकि वर्तमान पर्यायको अपेक्षा घट दीख पड़ता है और भूत भविष्यत् पर्यायकी अपेक्षा वह नहीं दीख पड़ता। जिसतरह वर्तमान पर्यायरूप स्वस्वरूपकी अपेक्षा घटका होना माना गया है || II || उसतरह भूत और भविष्यत् पर्यायकी अपेक्षा भी घटका होना माना जायगा तो स्वरूप पररूपका 18|| विभाग तो रहेगा नहीं फिर भूत भविष्यत् वर्तमान तीनोंमें कुछ भेद भी न रहेगा सब एक ही हो || जांयगी इसलिए सब घटोंका एक समयमें ही होना मानना पड़ेगा । यदि कदाचित् जिसतरह भूत हूँ|| भविष्यत् पर्याय रूप पररूपकी अपेक्षा घटका होना नहीं माना है उसतरह वर्तमान पर्यायरूप स्वस्वरूपकी || अपेक्षा भी घटका होना न माना जायगा तो जो घट नष्ट हो चुका अथवा जो घट आगे जाकर || उत्पन्न होनेवाला है उसमें जिसप्रकार घट व्यवहार नहीं होता उसप्रकार जो घट वर्तमानमें मोजूद है | उसमें भी घट व्यवहार न होगा। ___अथवा-उसी एक समयमें रहनेवाले आपसमें एक दूसरेके उपकारक रूप आदि गुणोंके समूहस्वरूप घटमें विशालता और वृक्षके मूल आदिके समान गोल आकार घटका स्वरूप है । उससे भिन्न आकार पररूप है। विशालता और गोलाई आकाररूप स्वस्वरूपकी अपेक्षा घट है और उससे भिन्न आकाररूप पररूपकी अपेक्षा घट नहीं है क्योंकि विशालता और गोल आकारके रहते ही घट व्यवहार BABAOGESCORRECOGESHUGREEKROGRESS ASSANSABAISHABASEASONSA RIER
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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