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________________ 30BARSHASTRACRORISTRIBHASAOISTORE क्तव्य है ॥४॥कथंचित् घट भी है और अवक्तन्य भी है ॥५॥ कथंचित् घट नहीं भी हैं और अवक्तव्य भी है ॥६॥और कथंचित् घट है भी, नहीं भी है, अवक्तव्य भी है॥७॥ इसप्रकार एक और है अनेक धर्मोकी विवक्षा और अविवक्षारहनेपर सात भंग सिद्ध हो जाते हैं । स्वस्वरूपकी अपेक्षा रहनेपर घट है और परस्वरूपकी अपेक्षा रहनेपर वह नहीं है। घटका स्वरूप क्या है और परस्वरूप क्या है ? | जिस रूपसे घटरूप बोध होता हो, घट संज्ञा जानी जाती हो और घट पदार्थमें प्रवृत्ति होती हो वही ६ घटका निजरूप है और जिससे घटज्ञान, घट संबा और घटमें-प्रवृत्ति नहीं होती हो वह घटका पररूप टू ६ है। घटत्वरूपसे घटका ज्ञान और घटका नाम तथा घटकी प्रवृत्ति होती है क्योंकि घटत्वधर्म सिवाय है। हूँ घटके अन्य किसी भी नहीं रहता इसलिये घटत्व तो घटका स्वरूप है और पटव मठत्व आदिसे घट है। है ज्ञान वा घट नाम वा घट प्रवृचि नहीं होती इसलिये पटत्व आदि घटके पररूप हैं। यह नियम है कि * जहांपर स्वस्वरूपका ग्रहण और परस्वरूपका परित्याग रहता है वहीं पर वस्तु वास्तविक वस्तु कही 2 जाती है किंतु जहांपर इससे विपरीत नियम है वहांपर वस्तुका वस्तुपना नहीं ठहर सकता। घट जिस तरह स्वस्वरूपसे है उस तरह यदि परस्वरूपसे भी उसका होना माना जायगा तो वस्र आदि जितने ह भी पदार्थ हैं घटसे कोई भिन्न न हो सकेंगे फिर सब पदार्थों को घंट-ही कह देना पडेगा तथा पट आदि पदार्थोंसे घटको भिन्न माननेपर भी यदि जिस तरह पट आदि पदार्थ घटसे भिन्न हैं उस तरह घटका ट्रै स्वरूप भी यदि घटसे भिन्न मान लिया जायगा तब गधेके सींगके समान घट नामका कोई पदार्थ ही सिद्ध न हो सकेगा क्योंकि जिसप्रकार गधेके सींगका कोई स्वरूप नहीं इसलिये वह पदार्थ नहीं उसी प्रकार यदि घटका स्वरूप सर्वथा घटसे जुदा मानाजायगा तो वह भी स्वस्वरूपके अभाव में पदार्थन सिद्ध RATNACHERE
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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