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________________ अ SAE-% A HARAGAORTS प्रमाण है और उनके एक देशका विषय करनेवाला नय है ऐसा शास्त्रका वचन है इस रीतिसे भीप्रमाणपूज्य है क्योंकि वह सब पदार्थोंको विषय करनेवाला है नय पूज्य नहीं हो सकते क्योंकि वेपदार्थके एक देशको ही विषय करनेवाले हैं। इसलिये पूज्य होनेके कारण प्रमाणका ही सूत्रमें पहिले पाठ रखना | युक्तिसिद्ध है, नयका नहीं। - अधिगमहेतुाईविधः स्वाधिगमहेतुः पराधिगमहेतुश्च ॥ ४ ॥ ___ अधिगमज हेतुका अर्थ ज्ञानमें कारण है । वह दो प्रकारका है एक खाधिगमहेतु, दूसरा पराधिP गेमहेतु । जो अपने ही ज्ञानमें कारण हो वह स्वाधिगमहेतु है इसलिये वह ज्ञानस्वरूप ही माना है और I उसके एक प्रमाणस्वाधिगम दूसरा नयस्वाधिगम इस तरह दो भेद हैं । जो दुसरेको ज्ञान करानेमें कारण | हो वह पराजिंगमहेतु है वह वचनस्वरूप है क्योंकि दूसरेको ज्ञान करानेमें कारण वचन ही है । इस परा६ धिगम हेतुको श्रुतज्ञान प्रमाण कहते हैं स्यादादनयसे युक्त इस श्रुतज्ञान (आगम) प्रमाणके द्वारा हर । एक पर्यायमें सप्तभंगीमान जीव आदि पदार्थों का ज्ञान होता है । सप्तभंगीका लक्षण इसप्रकार है प्रश्नवशादेकास्मन् वस्तुन्यविरोधेन विधिप्रतिषेधविकल्पना सप्तभंगी ॥५॥ पूछनेवालेके प्रश्नके वशसे किसी एक पदार्थमें प्रत्यक्ष और अनुमान किसी भी प्रमाणसे विरोध न आ सके इसरूपसे जो विधि और निषेधकी कल्पना करना है वह सप्तभंगी कही जाती है और आस्तित्व || नास्तित्व आदि सातों धर्मोंका जो समूह है वह सप्तभंगी शब्दका अर्थ है । वह इसप्रकार है-कथंचित घट है॥१॥ कथंचित् घट नहीं है ॥२॥ कथंचित् घट है भी और नहीं भी है ॥३॥ कथंचित् घट अव 4e4%ARAST-SGARTERRBA १५३
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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