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अध्यावा
अधिक सत्रह सागर प्रमाणःकाल है और कपोत लेश्याका कुछ अधिक सात सागर प्रमाणकाल है। तेज, ॐ पद्म और शुक्ललेश्याओंमें प्रत्येकका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है और उत्कृष्ट कुछ अधिक दो सागर
प्रमाण, कुछ अधिक अठारह सागर प्रमाण और कुछ अधिक तेतीस सागर प्रमाण है । अर्थात् तेजलेश्याका स्कृष्टकाल कुछ अधिक दो सागर प्रमाण है । पद्म लेश्याका कुछ अधिक अठारह सागर प्रमाण है और शुक्लले.श्याका कुछ अधिक तेतीस सागर प्रमाण है लेश्याओंके अंतरालकी व्यवस्था इस प्रकार है
- कृष्ण नील और कापोत तीनों लेश्याओंमें प्रत्येकका जघन्य अंतराल अंतर्मुहूर्त प्रमाण है । उत्कृष्ट है अंतर कुछ अधिक तेतीस सागर प्रमाण है । तेज पद्म और शुक्ललेश्याओंमें प्रत्येकका अंतराल जघन्य अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है और उत्कृष्ट अनन्तकाल है जो कि असंख्यात पुद्गल परावर्तन स्वरूप है। लेश्याओंके
भावकी व्यवस्था इसप्रकार है( शरीर नाम कर्म और मोहनीय कर्मके उदयसे जायमान होनेके कारण कृष्ण आदि छहो लेश्या
औदयिक भावस्वरूप हैं अर्थात् शरीर नामकर्मके उदयसे तो द्रव्यलेश्याकी उत्पचि होती है और मोहनीय कर्मके उदयसे भावलेश्याकी उत्पचि होती है। इसलिये दोनो प्रकारकी लेश्या औदयिक भाव स्वरूप है। तथा लेश्याओंका अल्पबहुत्व इसप्रकार है. सबसे थोडे शुक्ललेश्याके धारक जीव हैं। उनसे असंख्यातगुणे पद्मलेश्याके धारक हैं । उनसे असंख्यातगुण तेजोलेश्याके धारक हैं। उनसे अनंतगुणे अलेश्य-लेश्यारहित जीव हैं। उनसे अनंतगुणे कपोतलेश्यावाले जीव हैं उनसे कुछ अधिक अनंतगुणे नील लेश्यावाले हैं और उनसे कुछ आधिक अनंतगुणे कृष्ण लेश्यावाले हैं।॥२२॥ . . . : .. ..
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BREASURESUPE