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२०रा० भाषा
अंशोंके जो छब्बीस भेद हैं उनमें आयुके ग्रहणके हेतु मध्यम आठ अंश हैं। यहांपर यह शंका न करनी। चाहिये कि इस बातके माननेमें क्या. प्रमाण है क्योंकि 'अष्टाभिरपमध्यमेन परिणामनायुर्वधाति'। अर्थात् आठ अपकर्ष-अंश रूप मध्यम परिणामोंसे आयुका बंध होता है, ऐसा शास्त्रका वचन है । तथा
आठ अंशोंके सिवाय शेष जो लेश्याओंके अठारह अंश रह जाते हैं वे विशेषरूपसे पुण्य और पापके || संचयमें कारण होनेसे विशिष्ट गतिके निमित्त हैं । उनकी अपेक्षा रखनेवाला मध्यम परिणाम उन उन ।"
गतियोंके योग्य आयुके बंधौ कारण होता है इसप्रकार आयु और नाम कर्मके उदयके अधीन विशिष्ट गतिकी सचा लेश्याके द्वारा समझ लेनी चाहिए । विशेष खुलासा इस प्रकार है___..उत्कृष्ट शुक्ल लेश्याके अंशरूप परिणामसे जीव मरण के वाद सर्वार्थसिद्धि जाते हैं । जघन्य शुक्लं है। लेश्याके अंशरूप परिणामसे शुक्र महाशुक्र शतार और सहस्रार स्वर्गों में जाते हैं। मध्यम शुक्ललेश्याके अंशरूप परिणामसे आनतको आदि देकर सर्वार्थसिद्धि विमानसे पहिलेके विमानोंमें उत्पन्न होते हैं | 'अर्थात आनत स्वर्गसे लेकर अपराजित विमान तक उत्पन्न होते हैं । उत्कृष्ट पद्म लेश्याके अंशरूप परिणामसे सहस्रार स्वर्गमें जाते हैं । जघन्य पद्म लेश्याके अंशरूप परिणामसे सानत्कुमार और माहेंद्र स्वामें जाकर उत्पन्न होते हैं। मध्यम पद्म लेश्याके अंशरूप परिणामसे ब्रह्म लोकको आदि लेकर शतार से पहिले पहिले जाकर उत्पन्न होते हैं अर्थात् ब्रह्म ब्रह्मोचर लांतव कापिष्ठ शुक्र और महाशुक्र स्वर्ग पर्यंत उनका जन्म है । उत्कृष्ट तेजो लेश्याके अंशरूप परिणामसे सानत्कुमार और माहेंद्र स्वर्गका जो |अंतिम चक्र नामक विमान है उसमें तथा उसके श्रेणिबद्ध विमानोंमें जाकर उत्पन्न होते हैं। जघन्य तो तेजोलेश्याके अंशरूप परिणामसे सौधर्म और ऐशान स्वर्गोंका जो पहिला इंद्रक विमान है उसमें और
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