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________________ ABI प.स. वडी वडी डालियां काट लेनेपर अच्छीतरह फल खाए जासकते हैं इस लिए वह स्कंध और बडे बडे पापा 5 गुद्दोंका काटना व्यर्थ समझ केवल वडी वडी डालियां काटने लगा। जो मनुष्य पीत लेश्याका धारक था, ११०५५ कापोत लेश्यावालेके परिणामोंकी अपेक्षा उसके परिणामोंमे विशेष विशुद्धि होनेसे वह यह सोचने लगा कि छोटी छोटी पलगैयां काटने पर भी सुलभतासे फल खाये जा सकते हैं, स्कंध आदिके काटनकी कोई आवश्यकता नहीं इस लिए वह स्कंध आदि न काटकर छोटी छोटी डालियोंके काटनेका प्रबंध करने | लगा । जो मनुष्य पद्म लेश्याका धारक था पीत लेश्यावाले मनुष्यकी अपेक्षा उसके परिणामों में | विशेष विशुद्धता रहनेसे वह यह सोचने लगा कि फलोंके गुच्छे काटनेसे ही अच्छी तरह फल खाये | जासकते हैं स्कंध गुद्दे आदि काटना निरर्थक है इसलिए गुच्छोंके काटने के लिए प्रयल करने लगा। आ जो पुरुष शुक्ल लेश्याका धारक था अन्य समस्त लेश्याओंकी अपेक्षा उसके परिणामोंमें विशेष विशुद्धि ॥६॥ मा रहनेसे उसके मनमें यह विचार उत्पन्न हुआ कि गुच्छोंके काटनेकी भी क्या आवश्यकता है नीचे जो पके फल पडे हैं वे ही खाये जासकते हैं उनके खानेके लिए स्कंध आदि काटने निरर्थक हैं इसलिए वह स्कंध आदिको नहीं काट कर जो फल नीचे पडे थे उन्हींके खानेके लिए प्रयत्न करने लगा। इसप्रकार से IPI कृष्ण आदि लेश्याओंके धारकोंकी उचरोचर परिणामोंकी विशुद्धिका यह दृष्टांत है। अब लेश्याओंका लक्षण कहा जाता है प्रमाण और नयों के द्वारा भलेप्रकार निश्चित तत्वको न मानना, आगमके उपदेशका ग्रहणन करना " वैर विरोधका न छोडना, अत्यंत कुपित रइना, मुखका आकार सदा भयंकर रहना, हृदयमें जरा भी दयाका लेश न होना, क्लेश करना, मारना और संतोष आदिका न रखना कृष्णलेश्याका लक्षण है। १०५ MERA
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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