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________________ अध्याय तरा० भाषा १०९५ DECECREGISTREECEMUCHELORASHREE असेना पर्याप्त पंचद्रिय और संख्यातवर्षवाले तिथंच थोडे शुभ परिणामोंसे पुण्यकर्मका बंध कर |3|| | भवनवासी और व्यंतरोंमें उत्पन्न होते हैं। संज्ञी मिथ्यादृष्टि और सासादन सम्यग्दृष्टि तिर्यंच सहस्रार ||७|| स्वर्गपर्यंत उत्पन्न होते हैं तथा सम्यग्दृष्टि तिर्यंच सौधर्म स्वर्गको आदि लेकर अच्युत स्वर्ग पर्यंत उत्पन्न का होते हैं। असंख्यात वर्षोंकी आयुवाले भोगभूमियां, मिथ्यादृष्टि और सासादन सम्यग्दृष्टि तियच एवं मनुष्य, ज्योतिष्क पर्यंत उत्पन्न होते हैं अर्थात् भवनवासी व्यतर और ज्योतिष्क निकायोंमें उत्पन्न होते | हैं। उत्कृष्ट तापसी भी भवनवासी व्यंतर और ज्योतिष्क इन तीनों निकायों में उत्पन्न होते हैं । सम्य- I||| | हष्टि भोगभूमियां तिथंच और मनुष्य मौधर्म और ऐशान स्वर्गों में जन्म धारण करते हैं। संख्यात वर्षको || | आयुके धारक मिथ्यादृष्टि और सासादन सम्यग्दृष्टिं मनुष्य भवनवासी आदि उपरिम अवेयक पर्यंत उत्पन्न | || होते हैं अर्थात् भवनवासी व्यंतर ज्योतिष्क और वैमानिकों में उपरिम अवेयक पर्यंत उनकी उत्पत्ति है। || जो परिव्राजक सन्यासी हैं उनका ब्रह्मलोक पर्यंतके देवोंमें उपपाद-जन्म है । आजीवक संप्रदायके अनुयायी साधुओंका सहस्रार स्वर्गपर्यंत जन्म है। इससे आगे विमानोंमें निग्रंथ लिंगके सिवा अन्यलिंगोंके धारण करनेवाले जीवोंकी उत्पचि नहीं किंतु निग्रंथ लिंग धारण करनेवाले ही वहां उत्पन्न होते हैं। ___ उत्कृष्ट तपके करनेसे जिन्होंने पुण्यकर्मका संचय किया है ऐसे निग्रंथ लिंगके धारक भी मिश्यादृष्टि उपरिम अवेयकके अंत तक ही जाते हैं उससे आगे नहीं। उपरिम अवेयकके ऊपरके विमानोंमें | जिनका सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र प्रशस्त और प्रकृष्ट है वे ही जन्म धारण करते हैं। २०१५ अन्य नहीं । जो श्रावक हैं उनका सौधर्म स्वर्गको आदि लेकर अच्युत स्वर्गपर्यंत ही जन्म है। न उससे GLEAKSHAILEREMPLASSESCRECRAFREGLE+99 ।
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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