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________________ वश भाषा MARRESOR-HCAR REGAGAURBHABAR है उतना ही अधिक अभिमान होता है। शतपतिको अपेक्षा हजारपतिको अधिक अभिमान होगा। | हजारपतिकी अपेक्षा लखपति और लखपतिकी अपेक्षा करोडपति आदिको होगा इसलिए अभिमानकी उत्पत्तिमें परिग्रह कारण होनेसे परिग्रहके बाद सूत्रमें अभिमान शब्दका उल्लेख किया गया है। इस सूत्रमें भी उपर्युपरि और वैमानिक शब्दकी अनुवृत्ति है इसलिए ऊपर ऊपरके देवोंमें गति आदि कम कम होते चले गये हैं यह यहां तात्पर्य है। खुलासा इसप्रकार है- ". . . सौधर्म और ऐशान स्वर्गाके देवोंको नवीन नवीन पदार्थों के देखनेका विशेष कुतूहल रहता है | अथवा बार बार अधिक दूर जानेमें उन्हें अधिक आनंद मिलता है इसलिए क्रीडाकी अभिलाषासे | उनकी गति अधिक लंबे क्षेत्र तक होती है। आगे आगेके स्वगोंके देवोंके विषयोंके ग्रहण करने की | अभिलाषाकी उत्कटता रहती नहीं एवं गतिमें वह उत्कटता ही कारण है इसलिए उचरोचर उनकी गति हीन होती चली जाती है। देवोंके शरीरका परिमाण इसप्रकार है- " सौधर्म और ऐशान स्वगोंके देवोंका शरीर सात अरलि (हाथ) प्रमाण है। सानत्कुमार और माहेंद्र स्वगोंके देवोंका छह हाथ प्रमाण, ब्रह्मलोक ब्रह्मोचर लांतव और कापिष्ठ स्वोंके देवोंका पांच हाथ प्रमाण, शुक्र महाशुक्र शतार और सहस्रार स्वर्गों के देवोंका चार-हाथ प्रमाण, आनत प्राणत स्व| गोंके देवोंका साढे तीन हाथ प्रमाण, आरण और अच्युत स्वर्गोंका तीन हाथ'प्रमाण, अधों अवेयक है के देवोंका ढाई हाथ प्रमाण, मध्यप्रैवेयक देवोंका दो हाथ प्रमाण, उपरिम यक और अनुदिश विमा-| नोंमें रहनेवाले देवोंका डेढ हाथ प्रमाण और अनुत्तर विमानोंमें रहनेवाले देवोंका शरीर एक हाथ प्रमाण -१-एक इञ्च कम एक हाथको अरनि कहते हैं। E KHA
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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