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|नामका विमान पटल है। उसकी दिशा और विदिशाओंमें चार चार श्रेणिबद्ध विमान हैं। उनमें पूर्व ||
| दिशामें अर्चि नामका विमान है। दक्षिण दिशामें अर्चिमाली नामका विमान है। पश्चिममें वैरोचन || अध्याव भाषा और उचरमें प्रभास नामका विमान हैं तथा सबके बीचमें आदित्य नामका विमान है। विदिशाओंमें |
चार प्रकीर्णक विमान हैं। उनमें पूर्व दक्षिण कोणमें आर्चिःप्रभ है । दक्षिण और पश्चिम कोणमें अर्चि-1 ७ मध्य, पश्रिम और उत्तर कोणमें अर्चिरावर्त और उत्तर पूर्व कोणमें अनिर्विशिष्ट है। ये कुल नौ विमान हैं। | आदित्यपटलके ऊपर लाखों योजनोंके वाद अनुचर विमान है । वहांपर सर्वार्थसिद्धि नामका
एक पटल है। पूर्व आदि चारो दिशाओंमें प्रदक्षिणास्वरूप विजय बैजयंत जयंत और अपराजित ये M|चार विमान हैं और मध्यम सर्वार्थसिद्धि विमान हैं। अनुत्तरों में पुष्पप्रकीर्णक विमान नहीं हैं। 2 सौधर्म और ऐशान स्वाँके विषानोंकी मूलतलमें मुटाई एकसौ सचाईस योजन प्रमाण है और
मूलतलसे ऊंचाई पांचसौ योजन प्रमाण है तथा सानत्कुमार माहेंद्र, ब्रह्मलोक ब्रह्मोचर लांतव और
कापिष्ठ, शुक्र महाशुक्र शतार और सहस्रार, आनत प्राणत आरण और अच्युत, नव अवेयक अनुदिश MS और अनुत्तर विमानोंकी मुटाई एक एक योजन कम और ऊंचाई सौ सौ योजन अधिक समझ लेनी ||3||
चाहिये । अर्थात् सानत्कुमार और माहेंद्र स्वगोंकी मुटाई एकप्तौ छब्बीस योजन और ऊंचाई छहसौ ॥ योजन है। ब्रह्म ब्रह्मोचर लांतव और कापिष्ठ इन स्वगों में मुटाई एकसौ पच्चीस योजन और ऊंचाई | सातसौ योजन प्रमाण है। शुक्र महाशुक्र शतार और सहस्रार स्वर्गों में मुटाई एकसौ चौवीस योजना MA और ऊंचाई आठसौ योजन प्रमाण है। आनत प्राणत आरण और अच्युत इन चार स्त्रों में मुटाई।
।। १-हरिवंशपुराणमें यहाँपर कथनमें भेद है।
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