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अध्याय
HALAL
असंहितानिर्देशोऽसंदेहाथः ॥ ३॥ आ ऐशानात यहां संधि हो जानेपर 'ऐशानात्' ऐसा होता है परंतु ऐशाना ऐसा संधिविशिष्ट से उल्लेख न कर जो 'आ ऐशानात्' यह संधिरहित उल्लेख किया गया है वह संदेहके दूर करनेके लिये है। यदि ऐशानात्' ऐसा ही उल्लेख होता तो यहाँपर यह संदेह हो सकता था कि 'ऐशानात् यह उल्लेख | ऐशान स्वर्गतकके देवोंमें कायप्रवीचार प्रतिपादनकोलये आङ् गर्भित है अथवा यहांपर पूर्वदिशा वाचक प्राक् वा पूर्व शब्दका अध्याहार है ? 'आ ऐशानात्' ऐसा संधिरहित उल्लेख रहनेपर कोई संदेह नहीं होता इसलिये सूत्रमें संधिरहित उल्लेख संदेहके निराकरणार्थ है । अथवा
यदि यह संशय न भी होता तो भी 'पूर्वयोद्राः ' इस सूत्रसे यहांपर पूर्वयोः' का अधिकार होनेसे | उसकी अनुवृत्ति आती और उससे ऐशान स्वर्गसे पूर्वके दो स्थानोंके देवोंमें ही कायप्रवीचार है ऐसे
अवधिरूप कथनसे आनिष्ट अर्थ स्वीकार करना पडता क्योंकि भवनवासी व्यंतर ज्योतिष्क सौधर्मस्वगवासी और ऐशानस्वर्गवासी देवोंमें कायप्रवीचार माना है। 'पूर्वयोः' इस द्विवचनांत पूर्वशब्दकी अनुचिसे यह इष्ट अर्थ नहीं सिद्ध होता परन्तु 'आ ऐशानात' ऐसे संधिरहित उल्लेखसे इष्ट अर्थ सिद्ध हो जाता है इसलिये उपयुक्त अनिष्ट अर्थकी 'निवृचिके लिये भी 'आ ऐशानात' यह संधिरहित उल्लेख | आवश्यक है॥७॥
भवनवासी व्यंतर ज्योतिष्क सौधर्मस्वर्गवासी और ऐशान स्वर्गवासी देवोंके सुखस्वरूपका ज्ञान हो गया परन्तु बाकीके देवोंके क्या और कैसा सुख है ? यह नहीं मालूम हुआ इसलिये सूत्रकार अव उस सुखका प्रतिपादन करते हैं
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