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________________ ७२ ] सुवोध जैन पाठमाला - भाग २ पक्षी नही रक्खूँगा । ६. इतने से अधिक दुधारू पशु इतने से अधिक वाहन के पशु नही रखूँगा । ७ ............इतने से अधिक मुद्रावाला रोकड धन नही रखूँगा । ८....... इतने से अधिक धान्य, • इतनी से अधिक वनस्पति नही रक्खूंगा । इतने से अधिक कडाई आदि, इतने से अधिक ....... इतने से अधिक पलग आदि, इतने ε. मोटर आदि, से अधिक वस्त्रादि नही रक्खूँगा । इनका परिमारण घर और व्यापार की दृष्टि से बाँट कर भी रक्खा जा सकता है । • ****** • R *** 24000 प्र० : किये हुए क्षेत्रादि के परिमारण का उल्लंघन कैसे होता है ? उ० : जैसे १० खेत रक्खे हो, उनके स्थान पर २० खेत कर लेना आदि प्रकार तो स्पष्ट है ही, अन्य कुछ प्रकार यों हैं - १. अपने खेत के पास ग्रन्य खेत मिलने पर दोनो खेतों की एक वाड वना कर एक खेत गिनना । २. दस ही खेत श्रौर दस ही घर रक्खे हो, पर घर की अधिक ग्रावश्यकता दिखने पर दो-चार खेत घटा कर दो-चार घर बढा लेना । ३ दस खेत से अधिक मिलने पर उसे केवल दूसरो के नाम करना, पर अधिकार मन मे अपना रखना । ४ जितनी अवधि का व्रत लिया, है, उससे पहले अधिक धन की प्राप्ति होने पर धनदाता के पास जमा के रूप मे वह धन रखना आदि । 'परिग्रह' निबंध १. सूत्र : १ 'इच्छा हु आागास समा श्ररपंतिया' इच्छा ( परिग्रह की भावना) आकाश के समान अनंत है, उसका प्रत नही या सकता । - उत्तरा० । २. ज्यो लाभ होता है, त्यो संतोष
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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