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________________ सूत्र-विभाग-१२- "अपरिग्रह अणुव्रत' प्रश्नोत्तरी ७१ 'अपरिग्रह अणुव्रत' प्रश्नोत्तरी प्र० । स्थूल अपरिग्रह विरमण कितने प्रकार का है ? उ. तीन प्रकार का है। १. 'जितना परिग्रह वर्तमान मे स्वयं के पास है, उससे डेढे-दूने आदि से अधिक परिग्रह नहीं रक्खंगा। यदि उससे अधिक प्राप्त भी हुआ, तो मैं ग्रहण नहीं करूंगा या धर्म आदि मे व्यय कर दूंगा।' आदि रूप में विरमण करना जघन्य (निम्न प्रकार) का स्थूल परिग्रह विरमण है। २ जितना पास मे है, उतने से अधिक का विरमण करना मध्यम प्रकार का विरमण है। ३ जितना पास मे है, उसमे भी घटा कर अधिक का विरमण करना, उत्तम प्रकार का विरमरण है। शीघ्र मोक्षार्थी को उत्तम प्रकार का विरमरण अपनाना चाहिए। जिसकी प्राप्ति असम्भव है, उसका त्याग करना तो मात्र बाहरी त्याग है। ऐसा त्याग फलदायी नहीं है। प्र० : क्षेत्र आदि का परिमाण कैसे किया जाता है ? उ० . जैसे १. मैं धान्यादि आदि के • .."इतने से अधिक खेत, इतनी से अधिक गोचर भूमि, .." इतने से अधिक क्रीडांगरण आदि खुली भूमि नही रक्तूंगा। २...... .." इतने से अधिक तलघर, " ." इतने से अधिक माल खड, ... • इतने से अधिक पर्वतीय घर आदि ढकी भूमि नहीं रक्खंगा। ३-४......... ... ... .. इतने तोले से अधिक चांदी-सोना के घडे हुए आभूषण,....... इतने तोले से अधिक पाट, गिन्नी आदि के रूप में बिना घडी चाँदी, सोना नही रक्खूगा। इसी प्रकार ..... • इतने से अधिक मणि-रत्नादि नहीं रक्खेगा। ५.. ......." इतने से अधिक नौकर,..... ... इतने से अधिक
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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