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________________ १८ ] सुबोध जैन पाठमाला-भाग २ परिणच्छियव्वो : (मन से) अंनिच्छनीय इच्छा की हो असावग-पाउंग्गो : (यो) श्रावक' 'धर्म विरुद्ध' काम किया हो १. गाणे तह २. दसरणे : (करके) ज्ञान तथा दर्शन मे ३. चरित्ताचरिते चारित्राचारित्र (श्रावक व्रत) मे १. सुए : (दूसरे शब्दो मे) श्रुत (ज्ञान) मे - २. ३. सामाइए : सामायिक (दर्शन तथा श्रावक व्रत) में अतिचार लगाया हो। तिण्हं गुत्तीणं : तीन गुप्तियाँ न की हो चउण्हं कसायारणं : चार कपायें की हो। पंचण्हमगुब्वयारणं : पाँच अणुव्रतो का तिण्हं गुररावधारणं : तीन गुणवतो का चउर्जा : चार शक्षांवतो का सिक्खावयारणं (इस प्रकार ५+३+४=१२) बारस-विहस्म : वारह प्रकार के सावग-धम्मस्स श्रावक धर्म की ज खंडिय ': जो (कुंछ) खडना की हो जं विराहियं : जो (अधिक) विराधना की हो अतिचार प्रतिक्रमण तस्स मिच्छामि दुक्कडं उसका मेरा पाप निष्फल हो। प्रश्नोत्तर प्र०': अणुव्रत किसे कहते हैं ? उ० : जो महाव्रतो की अपेक्षा अणु अर्थात् छोटे हों। प्र०: गुरणवत किसे कहते हैं ?
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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