SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र-विभाग-३. 'इच्छामि ठाएमि' [ १७ मंत्र पढ़ें, उसके पश्चात् नमस्कार मत्र पढकर कायोत्सर्ग पारें और प्रकट एक नमस्कार मत्र और ध्यान पारने का.पाठ कहे। इति पहला प्रावश्यक समाप्त । कायोत्सर्ग प्रतिज्ञा इच्छामि ठाएमि (ठाइड) काउस्सग्गं। : मैं चाहता हूँ : करना : कायोत्सर्ग। अतिचार आलोचना जो मे : (निम्न अतिचारों में से) मुझे जो कोई देवसिप्रो अइयारो को १ काइयो २ वाइनो ३. माररासिनो २ उस्सुत्तो उम्मग्गो १ प्रकप्पो प्रकररिणज्जो : दिन संबधी : अतिचार लगा हो (तो आलोउ) : काया सबंधी अतिचार लगा हो : वचन सबधी अतिचार लगा हो : मन सबंधी अतिचार लगा हो : वचन से उत्सूत्र (सूत्र-विरुद्ध) कहा हो : उन्मार्ग (जैन-मार्ग-विरुद्ध) कहा हो : (काया से) अकल्पनीय कार्य किया हो : अकरणीय ( नहीं करने योग्य ) किया हो : (मन से सतत) आर्त रौद्र ध्यान ध्याया हो : कभी-कभी दुष्ट चिन्तन किया हो, (यों : वचन काया से) अनाचार किया हो ३. दुज्झायो दुन्विचितिम्रो प्रणायारो
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy