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________________ १० ] सुर्वाध जन पाठमाला-भाग २ श्रावण मे प्रतिक्रमण करना और दो भाद्रपद होने पर पहले भाद्रपद मे प्रतिक्रमण करना। इनमे से पहला मत 'चातुर्मासिक प्रतिक्रमण मे जैसे अधिक मास गौरण किया जाता है', वैसे ही दूसरा मत 'सवत्सरी प्रतिक्रमण मे भी अधिक मास गौरण करना, इस मान्यता को लेकर चलने वालो का है। और तीसरा मत 'वर्षावास प्रारम्भ होने के पश्चात् ४६-५०वे दिन संवत्सरी करना' इस मान्यता वालो का है। प्र० दूसरो की संध्याआदि में (संध्यापाठ आदि मे) और हमारे आवश्यक मे क्या अन्तर है ? .. उ० दूसरे लोगो की सध्या आदि में केवल ईश्वर-स्मरण और प्रार्थना आदि की मुख्यता रहती है, अपने ज्ञानादि धर्मों की स्मृति तथा अपने, पापो के प्रतिक्रमण की मुख्यता नहीं रहती, पर हमारे आवश्यक मे अपने ज्ञानादि धर्मों की स्मृति तथा अपने पापो की प्रतिक्रमण की मुख्यता है, जो अन्तरग दृष्टि से (उपादान दृष्टि से) अधिक आवश्यक है। इसलिए हमारा आवश्यक उपयुक्त और बढ़कर है। प्र० : सूत्र किसे कहते हैं ? ' उ० लोक मे सूत को सूत्र कहते हैं, जिसमें माली बाग के फूल पिरोता है या मणियार मरिण-मोती पिरोता है। 'पर यहाँ धार्मिक क्षेत्र मे गणधरो की शब्द-रचना को 'सूत्र' कहते इस सम्बन्ध मे वर्धमान श्रमण संघ का नियम पालने वालों को.- पहले मत के अनुसार प्रतिक्रमण करना चाहिए।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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