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________________ बोहि सूत्र-विभाग-३१ नमो चउवीसाए' 'निर्ग्रन्थ प्रवचन' का पाठ १७९ : आगामी भवो में बोधि (सम्यक्त्व) उवसपवज्जामि सुलभ हो, ऐसी क्रिया स्वीकारता हूँ उम्मग्ग : उन्मार्ग (ससार मार्य और कुमार्ग) परियारणामि को त्यागने योग्य जानकर त्यागता हूँ : (सम्यग्ज्ञान दर्शन चारित्र तप उवसंपवज्जामि रूप मोक्ष के सम्यग्) मार्ग करे स्वीकारता हूँ। अशेष (सम्पूर्ण) सक्षिप्त प्रतिक्रमण मग जं संभरामि • जिन अतिचारो का स्मरण हो रहा है जं च न समरामि और जिन का स्मरण नहीं हो रहा है जं पडिक्कमानि : जिनका प्रतिक्रमण कर रहा हूँ ज च न एडिक्कमाईम : और जिनका प्रतिक्रमण नहीं कर रहा है। तस्स सव्वस्स : उन सभी देवसियस्स अइयारस्स : दिन सबधो अतिचारो का पडिक्कमामि : प्रतिक्रमण करता हूँ क्योकि मैं समरणो ऽह संजय : मैं श्रमण (श्रावक हैं) : क्योकि (पाप कर्म छोडकर) सयत (श्रावक) बना हूँ, वह ऐसे : वर्तमान का सवर कर विरत बना हूँ : भूत का प्रतिक्रमण कर प्रतिहत बना विरयपडिहय पच्चखाय- . : भविष्य का प्रत्याख्यान कर
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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