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________________ ४२ ] जैन सुबोध पाठमाला - भाग १ की हो। श्रारणाए =(अरिहंत भगवान् की आज्ञानुसार सामायिक की) अनुपालना। नन। भवई हुई हो। तस्स-उसका। मि मेरा। दुक्कडं दुष्कृत (पाप)। मिच्छा = मिथ्या (निष्फल) हो। विकथा = सामायिक (सयम) की बिराधना करने वाली कथा। १. खोकथा-स्त्री की, (क) जाति की, (ख) कुल की, (ग) रूप की, (घ) वेग को आदि की निन्दा या प्रगसा-रूप कथा करना। '२ भक्तकया=(क) भोजन में इतना घे आदि लगा, (ख) इतने पकवान बने, (ग) इतनी वनस्पति लगी, (व) इतने रुपये व्यय “ हुए आदि या निन्दा-प्रशसा-रूप कथा करना। ३ देशकथा = (क) अमुक देश में उस लडकी से लग्न किया जाता है, (ख) वैसा भोजन जिमाया जाता है, (ग) वैसे मकान बनाये जाते हैं, (घ) स्त्री-पुरुप वेसे वेग पहनते हैं - इत्यादि निन्दा या प्रशंसा-रूप कथा करना। ४. राजकथा-(क) अमुक राजा घूमने आदि के लिए राजधानी से ऐसे ठाटबाट से निकला, (ख) उसने विजय प्रादि करके इस प्रकार राजधानी में प्रवेश किया, (ग) अमुक राजा के पास या राज्य में इतनी, सेना, शस्त्र आदि है, (घ) इतने धन-धान्य आदि के कोष, कोष्ठागार हैं-ग्रादि निन्दा या प्रासा-रूप कथा करना। सज्ञा =अभिलापा। १. पाहार-संज्ञा सामायिक में भोजन आदि की अभिलापा। २. भय-सज्ञा-भयंकर देव, हिंस्र पशु आदि से डरना। ३. मथुन-संज्ञा स्त्री आदि के कामभोग की अभिलाषा। ४. परिग्रह-संज्ञा-धर्मोपकरण के अतिरिक्त सम्पत्ति की अभिलाषा तथा धर्मोपकरण पर मूर्छा।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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