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________________ पाठ १२–एयस्स नवमस्स : सामायिक पारने का पाठ [ ४१ शब्दार्थ : एयस्स = इस 1 वयस्स व्रत के । जारिणयव्वा = जानने योग्य हैं । करने योग्य । न = नहीं है । तंजहा = वे इस प्रकार है : मरण = मन का । वय = वचन का । दुपरिहारपे= दुष्प्रणिधान । काय = काया का | दुप्परिपहाणे = दुष्प्रणिधान । सामइयस्स = सामायिक की । सइ = स्मृति । प्रकरराया = न करना ( न रखना) 1 सामाइयस्स = सामायिक को अनवस्थित | कररणया = करना | नवमस्स = नववें | पंच = पाँच | मि=मेरा | ( निरफल) हो । सामाइय = सामायिक | श्रइयारा = अतिचार | सनायरियव्वा = आचरण दुष्परिणहारणे - दुष्प्ररिणघान । = यदि ये प्रतिचार लगे हो, तो दुष्कृत = दुष्कृत (पाप) 1 मिच्छा = मिथ्या सम्म : = सम्यक रूप में 1 कारणं = काया से 1 सामाइयं = सामायिक का । १. फासियं = ( प्रारंभ मे प्रत्याख्यान का पाठ न पढने से स्पर्श । न=न किया हो । २. पालियं = ( मध्य में सावद्ययोग न छोड़ने से ) पालन | न = न किया हो । ३. तीरियं = ( सामायिक को अन्त मे पाँच मिनट अधिक न बढ़ाने से ) तीर पर । न=न पहुँचाई हो । ४. किट्टियं = ( सामायिक समाप्त होने पर सामायिक के गुणो आदि का ) कीर्त्तन । न=न किया हो । ५. सोहियं = ( सामायिक में लगे अतिचारो की आलोचना प्रतिक्रमण करके सामायिक को ) शुद्ध । नन बनाई हो । राहिय = ( इस प्रकार सामायिक की ) आराधना | न=न |
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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