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________________ कया-विभाग-२ गणधर श्री इन्द्रभूतिजी [ १९६ ज्ञान-रुचि श्री गौतम स्वामीजी तीन शब्द सुनकर सम्पूर्ण शास्त्र ज्ञान पा गये थे। उन्हे दोक्षा लेते ही चौथा 'मन पर्याय' ज्ञान भी उत्पन्न हो चुका था। फिर भी वे सदा अगवान् की वाणी • सुनते और प्रश्न पूछते रहते। भव्य (मोक्ष पाने योग्य) जीवो के हित के लिए उन्होने भगवान् से सहस्रो-लाखो प्रश्न पूछे। उनके वे प्रश्न उस समय विश्व के लिए बहुत उपकारी सिद्ध हुए। आज भी उनके वे प्रश्नोत्तर हम पर बहुत ही उपकार कर रहे है। क्योकि आज जो शास्त्र है, उन मे से कई और कई के बहुत से भाग श्री इन्द्रभूतिजी के प्रश्न और श्री महावीरस्वामीजी के उत्तरो के सग्रह से ही बने है। इन प्रश्नोत्तरो का सग्रह पॉचत्रे गरावर श्री सुधर्मास्वामीजी ने किया था। तपस्वी और निष्पह श्री गौतमस्वामीजी ने जिस दिन दीक्षा ली, उस दिन से ही उन्होने यावज्जोवन वेले-वेले पारणे (दो-दो उपवास के अन्तर से भोजन) करने का अभिग्रह (निश्चय) किया और जीवन भर बेले-वेले करके निभाया। इस प्रकार श्री गौतम स्वामी मात्र बहुत ज्ञानी ही नहीं, घोर तपस्वी भी थे। ज्ञान का सार यही है कि-कपायो को जोते, इन्द्रियो का दमन करे और शक्ति अनुसार तप भी करे। तप के कारण उन्हे कई लब्धियाँ (गक्तियाँ) प्राप्त हो चुकी थी। जैसे 'कटोरी भर बहराई हुई खीर मे यदि उनका अगूठा लग जाता, तो उस खीर से. सैकडो सन्तो का पारणा हो जाता, फिर भी वह खीर अक्षय
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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