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________________ १९४ ] जैन सुबोध पाठमाला--भाग १ प्रसन्न हुए। वे कहने लगे- 'देखो। हमारे यज्ञ का कितना प्रभाव है । हमारा यज्ञ कितनी उत्तम विधि से किया जा रहा है कि, आज उसे देखने के लिए और हवन लेने के लिये देव ही नहीं, साथ मे इन्द्र भी पा रहे है ।' पर कुछ ही समय मे जब देवो और इन्द्रो को यज्ञमण्डप से आगे जाते देखा, तो वे सभी विचार मे पड गये-'अरे, यह क्या हो रहा है? ये देव और इन्द्र कहाँ जा रहे है ? यन तो यहाँ हो रहा है ? कही ये यज्ञ के इस स्थान को भूल तो नही गये अथवा विनानो को अन्य स्थान पर छोड़कर यहाँ पाने के लिए तो कही नही जा रहे है ?' । 'प श्री गौतम को अहकार को उत्पत्ति लोगो में जक जानकारी हुई कि 'यहाँ भगवान् महावीर स्वामी पधारे हुए हैं। उनका उपदेश अनूठा है। उनकी वाणी वहत मनोहर हैं। वे अद्वितीय अतिशय वाले है। उन्हें केवलज्ञान प्राप्त है। वे सर्वत है। ये देर और इन्द्र तुम्हारे लिए नहीं, किन्तु भगवान् महावीरस्वामो के दर्शन करने व वागो सुनने के लिए आये हैं।' तो श्री इन्द्रभूति को इन गव्दो को सुनकर तत्काल तीव्र ईर्ष्या उत्पन्न हुई। उनसे 'सर्वज्ञ' शव्द तो मानो मुना ही नहीं गया। उन्हे अहकार था कि 'इस विश्व मे मैं अद्वितीय हूँ। मेरी कोई समता नहीं कर सकता हैं। फिर कोई मुझ से बढकर केते हो सकता है ? इसलिए देव और इन्द्र मुझे छोड़कर किसी दूसरे के पास जायें- यह नही हो मकता। लगता है, यह कोई महान् इन्द्रजालिक है। इसने सव को भ्रम मे डाल दिया है। देवता और इन्द्र भी इसकी महामाया मे आ गये हैं। पर इससे क्या हुआ? मैं अभी
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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