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________________ कथा-'वभाग- १. भगवान महावीर [ १६१ ११. षष्ठ (बेला) तप २२६ .... ४५८ .. २२६ १२ भद्र प्रतिमा तप १ ... २ . ० १३ महाभद्र प्रतिमा तप १४ सर्वतोभद्र प्रतिमा तप १ ... १० .. १ कुल योग ३५१ ... ४१६५ ... ३४६ तप दिन ४१६५,+पारणक दिन ३४६,+ दीक्षा दिन १ = कुल दिन ४५१५ हुए, जिसके बारह वर्ष छह मास और पन्द्रह दिन होते हैं। शिक्षाएँ १ कर्म किसी को भी नही छोडते यह देख कर्म करने मे भयभीत रहा। २ तीर्थकर भी गृह त्याग कर साधु-धर्म स्वीकारते है, तो बिना धर्म हमारा कल्याण कसे होगा ? ३. भगवान् ने जब इतना दीर्घ और उग्र तप किया, तो हमे भी गक्ति अनुसार तप करना चाहिए। ४. जब भगवान् ने उपसर्गों के सामने जाकर उपसर्ग सहे, तो कम-से-कम हमे आये हुए उपसर्ग तो सहने ही चाहिएँ। ५ जो भगवान के पैरो के पीछे चलता है, वह कभी निराश नहीं होता। प्रश्न १ भगवान् की गृह-अवस्था की विशिष्ट घटनानों का वर्णन कीजिए। २ भगवान् की छयस्थ-पर्याय की विशिष्ट घटनाओ का वर्णन फीजिए।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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