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________________ ___१६० ] जैन मुवोध पाठमाला--भाग १ ऊँची सन्या एक लाख, उनसाठ सहस्र तक पहुँची और सुलसा, रेवती आदि श्राविकाओ की ऊंची संख्या तीन लाख, उन्नीस सहस्र तक पहुँचो। (६ कामदेव और ७ सुलसा की कथा आगे देखो। रेवती की कथा इसो कथा मे पहले या चुकी है।) भगवान् के ७०० शिष्य और १४०० शिप्याएं मोक्ष पहुंची। भगवान् के पश्चात् उनके पाट पर श्री सुवर्मा नामक पाँचवे गणधर विराजे और उनके पाट पर श्री जम् स्वामी विराजे । जम्बू स्वामो तक जीव धर्म-क्रिया करके मोक्ष जाते रहे। अव धर्म-क्रिया करके जीव एक भव अवतारी तक बन सकते हैं । ॥ इति भगवान् महादीर की कथा समाप्त ॥ -श्री प्राचाराग स्थानाग, भगवती, जम्यूद्वीप, कल्प, आवश्यक श्रादि सूत्रो से, उनकी वृत्तियो से तथा अन्य ग्रन्थो से । भगवान के छमस्थकाल के तप दिन -पारगा सत्या सख्या सख्या १. पूरे छह महीने का तप १ .. १८० .... २ पांच दिन कम छह मासिक तप १ .... १७५ .... ३. चौमासिक तप १०८० ४ तीन मासिक तप २ .... ५ ढाई मासिक तप ६ दो मासिक तप ३६० ७ डेढ मासिक तप ८. मासिक तप १२ .... ३६० ६. अर्द्ध मासिक तप ७२ .... १०८० ... १०. अष्टम (तेला) तप .... ३६ तप तप 170 .... १ ___wa or or ur १८० १५० or uor our ६० A
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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