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________________ क्थ -विभाग - १ भगवान् महावीर [ १७७ प्रादि भर गये, परन्तु भगवान् विचलित नहीं हुए। तब उसने भगवान् को, विचलित करने के लिए दूमरा, दूसरे से भी विचलित न होने पर तीसरा, तीसरे से भी विचलित न होने पर चौथायो क्रमशः एक ही रात्रि में आगे लिखे जाने वाले २० उपसर्ग दिये। १. धूल-वर्षा की। २ कीडिये बन कर भगवान् के शरीर को चालनी-सा छिदवाया। ३ डाँस और ४ कीडे बनकर काटा। ५ विच्छू और ६ सर्प बन कर दश दिये। ७. नौले और ८ चूहे वनकर काटा । है हाथी और १० हथिनी वनकर उछाला, रोदा। ११ पिशाच होकर खड्ग से खण्डखण्ड किये। १२ व्याघ्र बनकर फाडा । १३ सिद्धार्थ और १४: त्रिशला, बनकर करुण क्रन्दन किया। १५. पैरों पर खीर पकाई। १६ पक्षी वनकर मॉस नोचा। १७ खरवात से भगवान्, को उठा-उठाकर पटका। १८. कलकलीवात से चक्रवत् घुमाया। १६. कालचक्र बनाकर आकाग में ले जाकर पटका। २० 'तुम मेरे उपसर्गों से नही डिगे, इसलिए वर माँगो । मैं तुम्हे स्वर्ग या मोक्ष भी दे सकता है।' बीसवे उपसर्ग मे इस प्रकार कहा। परन्तु भगवान् इन चीस उपसर्गो में से एक उपसर्ग से भी विचलित नही हुए। जब ये वीस उपसर्ग करके भी सगम भगवान् को डिगा नहीं सका तो उसे बहुत क्रोध पाया। सगा के छह भासिक उपसर्ग रात्रि पूर्ण होने पर भगवान् वहाँ से विहार कर गये। परन्तु वह पीछे ही पड़ा रहा। कहो चोर बनकर उन्हे उपसर्ग देता। कभी गौचरी गये हुए भगवान् के शरीर को ढक कर स्त्रियो के सामने अपने ऐसे रूप बनाता, जिससे स्त्रियो को ऐसा
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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