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________________ १७४ ] जन सुवोध पाठमाला-भाग १ वैश्यायन ने अपनी लेश्या को नष्ट और गोशालक को सुरक्षित देख कर भगवान् से कहा . 'भगवन् ! मैंने जाना, जाना, जाना।' उसके इस कथन का भाव यह था कि 'पाप मुझसे महान् है तथा आपके प्रभाव से यह गोगालक नही जला है --यह मैंने जाना।' गोशालक ने यह सुनकर भगवान् से पूछा · 'यह-जाना, जाना, जाना - क्या कहता है ?' तव भगवान् ने गोगालक को उसके द्वारा वैश्यायन को देखना, खिसकना, हँसी उडाना और वैश्यायन द्वारा उस पर लेश्या फेकना, उसकी स्वय रक्षा करना श्रादि सव बाते बताते हुए 'जाना, जाना, जाना' का अर्थ वताया। तव गोगालक ने भगवान् से तेजोलेश्या-प्राप्ति की विधि पूछो । भगवान् ने भावीवण उसे विधि बताई। गोशालक का पृथक् होना . उसके पश्चात् की बात है। पुन भगवान् कूर्म गॉव से सिद्धार्थ गॉव पधार रहे थे। गोशालक साथ मे था। उसने भगवान् की हँसी उडाने के लिए कहा 'भगवन् ! ग्राप जो पौधा फलने आदि की वाते कर रहे थे, वे अव प्रत्यक्ष सूठी दिखाई दे रही हैं।' तव भगवान् ने उसे 'उसकी झूठा ठहराने की भावना और अपने वचन कसे सत्य हुए' आदि सारी वाते कह सुनाईं। फिर भी उसे विश्वास नहीं हुआ। तब उस घृष्ट ने भगवान के ही सामने जाकर उस तिल के पौधे को देखा और उसकी फली तोड़ कर तिल गिने। भगवान् की बात सच्ची निकलने पर भी, भगवान् पर श्रद्धा करना दूर रहा, वह भगवान् से भिन्न हो गया।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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