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________________ तत्त्व विभाग-चार गति के कारण ४. कूट तोल कूट माप : देते समय कम तोलना-मापना, लेते समय अधिक तोलना-मापना । ३. मनुष्य गति के चार कारण १. प्रकृति भद्रता : प्राकृतिक (स्वाभाविक, बनावटो नही) भद्रता रखना। २. प्रकृति विनीतता : प्राकृतिक विनयशीलता रखना। ३. सानुक्रोशता : अनुकम्पा (दया) भाव रखना। ४. अमत्सरता : मत्सरता (ईष्या-बुद्धि) का भाव न रखना। ४ देव गति के चार कारण १. सराग-सयम : प्रमाद और कषाय सहित साधुत्व पालना। २. संयमा-संयम : श्रावकत्व पालना। ३. बाल-तप : अजैन साधुओ और अजैन गृहस्थो का अज्ञान तप करना। ४. प्रकाम-निर्जरा : अभाव, पराधीनता आदि कारणो से अनिच्छापूर्वक परीषह और उपसर्ग सहन करना।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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