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________________ तत्त्व विभाग चौदहवाँ बोल : ' छोटी नव तत्व के ११५ भेद' [ १२५ ११. ध्यान : एकाग्र शुभ मनोयोग तथा मन-वचन-काया २ रौद्र ध्यान को छोड़ कर, Volpegg का निरोध । जैसे १ आर्त, ३ धर्म, ४ शुक्ल ध्यान करना । १२. कायोत्सर्ग : काया का ममत्व छोडना, काया को स्थिर रखना श्रादि । प्रथम के छह बाह्य तप हैं । विशेष पडे, उन्हे बाह्य तप कहते हैं । जिनका प्रभाव काया पर सात से बारह तक के भेद आभ्यन्तर तप है। जिनका प्रभाव आत्मा पर विशेष पडे, उन्हे प्राभ्यन्तर तप कहते है । ८. बन्ध तत्व के ४ भेद बन्ध : १ वन्धन को 'बन्ध' कहते हैं । २ आत्मा के बन्ध योग्य परिणाम, ३ मन-वचन काया के योग, ४ उन दोनो के द्वारा आत्मा के साथ कर्म-पुद्रलो का लौहपिण्ड और अग्नि के समान या दूध और पानी के समान बन्ध ( जुडान) होना और बँधे रहना बन्ध कहलाता है । १. प्रकृति बन्ध : जीव के साथ बँधे हुए कर्मो मे ज्ञान ढँकना आदि स्वभावो का बंधना । २. स्थिति बध : जीव के साथ बँधे हुए कर्मों मे मुक समय तक जीवो के साथ रहने की काल - मर्यादा का बँधना । ३. अनुभाग बन्ध : जीवन के साथ बँधे हुए कर्मो मे तीव्र मन्द फल देने की शक्ति बँधना । ४. प्रदेश बन्ध : जीव के साथ न्यूनाधिक प्रदेशो वाले कर्म - स्कध का बन्ध होना ।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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