SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाठ २५–'सामायिक' प्रश्नोत्ती [ १०१ उ० . नही। कायोत्सर्ग और नमोत्थुण की विधि छोडकर शेष पाठो की विधि करनी चाहिए। प्र० कायोत्सर्ग की विधि क्या है ? उ० कायोत्सर्ग जिनमुद्रा मे खडे होकर या पर्यकादि आसन से बैठकर करना चाहिए, परन्तु योगमुद्रा से हाथ नही जोडने चाहिएँ। यदि कायोत्सर्ग जिनमुद्रा से (खडे रह कर) करना हो, तो दोनो हाथो को घुटनो की ओर लम्बे करके रखने चाहिएँ और खुले रखने चाहिएँ। और यदि पर्यंकासन (आलथी-पालथी) से करना हो, तो वाये हाथ को पालथे -पालथके बीचोबीच खुला रखना चाहिए और उसी पर दाये (जीमने) हाथ 'को खुला रखना चाहिए। प्र० • कायोत्सर्ग मे हाथ इस प्रकार क्यो रक्खे जाते है ? उ० . हाथो को इस प्रकार रखने से देह के प्रति ममता छूटने मे सहायता मिलती है। कायोत्सर्ग मे देह के प्रति ममता छोडनी चाहिए, इसलिए कायोत्सर्ग मे हाथो को इस प्रकार रक्खा जाता है। प्र० • नमोत्थुरणं देने की विधि क्या है ? उ० नमोत्थुण देते समय योगमुद्रा से हाथ जोडने चाहिएँ तथा दाये घुटने को मोडकर नीचे भूमि पर टिकाना चाहिए और बाये घुटने को मोडकर खडा रखना चाहिए। (यह नियम सलेखना के पाठ मे पढे जाने वाले नमोत्थुण के लिए लागू नहीं होता । सलेखना के समय नमोत्थुरा पर्यंक आसन से बैठकर पढा जाता है।) प्र०., : नमोत्थुरण ऐसे आसन से क्यो पढा जाता है ? उ० : नमोत्थुरण मे भक्ति की जाती है। भक्ति के समय
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy