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________________ (४०) यह कहना कि द्रव्यवेद का कथन इस पटखएडागम में नहीं है उसे प्रन्यांतर से समझना चाहिये सिद्धांत शाब को अधूरा बताने के साथ वस्तु तत्व का अपनाप करना भी है। क्योंकि द्रव्यवेद का वर्णन हो सरसरूपण अनुयोग द्वार में किया गया है जिसका कि दिग्दर्शन हमने अनेक सूत्रों के प्रमाणों से यह कराया है। उस समस्त कथन का भाव-पक्षी विद्वानों के निरूपण से लोप ही हो जाता है अथवा विपरीत कथन सिद्ध होता है। मनसा वचसा कायेन परम वंदनीय इन सिद्धांत शाखों के मा. शयानुमार ही उन्हें वस्तु तत्व का विचार करना चाहिये ऐसा प्रसंगापात्त उनसे हमारा निवेदन है। भागे भी सिद्धांत शास्त्र सर्राण के अनुसार पोतियों में गुणस्थानों के साथ चारों गतियों में द्रव्यवेद अथवा द्रव्य शरीर का ही सम्बन्ध है। यह बात आगे के १०० सूत्रों तक तक कि पर्यालयों के साथ गति-नि गुणस्थानों का विवेचन बराबर इसी रूप में है। १००३ सूत्र के बाद वेद मागेणा का प्रारम्भ १०१ सूत्र से होता है। उस वेद मार्गणा से लेकर मागे की कथायादि मार्गणामों में द्रव्य शरीर को मुख्यता नहीं रहती है। अतः उन सबों में भारवेद का विवेचन है। उस भाववेद प्रकरण में मानुषियों के नो और चोरह गुणस्थान का समावेश किया गया है, इस सिद्धांत सर्राण को समझकर ही विद्वानों को प्रकस विषय (सबत पद के विवाद) को सरल बुद्धि से हटा देने में
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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