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________________ (३६) किया है किन्तु नाकियों के द्रव्य शरीर में और उनकी पर्याप्त अवस्था में सम्भव होने वाले गुणस्थानों का उल्लेख किया है। इसी प्रकरण में पर्याप्तियों के साथ गान मारणा में ६३ वां सूत्र है। अतः जैसे यहां पर नारकियों के द्रव्यशर र (द्रव्य वेद) की मुख्यता से सम्भव गुणस्थानों का प्रतिपादन सूत्रकार ने पिया। ठीक इसी प्रकार भागे के ८१ से लेकर ६ प्रादि सूत्र में भी किया है। वहां भी पर्याप्त अपयाप्त अवस्था से सम्बन्धित द्रव्यवेद की मुख्यता से मम्भव गुणस्थानों का वर्णन है। विद्वानोंको क्रमपति, प्रकरण और संबंध ममन्वय का विचार करके ही अन्य का रहस्य समझना चहिये । “समस्त षटम्बएडागम भाववेद का ही निरूपक है, द्रध्यवेद का इसमें कहीं भी वर्णन नहीं है वह प्रन्यांतरों से समझना चाहिये" ऐसा एक अोर से सभी भावपक्षी विद्वान् भरने लम्ब र लेखों में लिख रहे हैं सो वे क्या समझकर ऐसा लिखते हैं ? हमें तो उनके वैसे लेख और प्रन्याशय के समझने पर पाश्चर्य होता है। ऊपर जा कुछ भी विवेचन हमने सूत्रों और व्याख्या के माधार किया है उसपर उन विद्वानों का होष्ट देना चाहिये भोर पन्थानुरूप ही समझने के लिये बुद्धि को उपयुक्त बनाना चाहिये। पक्ष मोह में पड़कर भगवान भूताल पुष्पदन्त ने इन धवलादि सिद्धांत शास्त्रों में किसी बात को बोड़ा नहीं है। उन्होंने द्रव्य शरीर की पात्रता के भाधार पर ही सम्भव गुणस्थान का समन्वय किया है। इसलिये
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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