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________________ . -न्यायापार जी का नवीन दृष्टिकोण न्यायानर जी ने इस प्रन्थ में मादि की चार मागणामों को लेकर एक ऐसा नवीन दृष्टिकोण प्रगट किया है जो षटखएडागम सिद्धांत शाब के द्रव्यवेद वर्णन का स्फुट रूप से परिचय करा देता है धवल सिद्धांत के पहले सूत्र से लेकर १०० सूत्रों पर्यत जो क्रमबद्ध वर्णन द्रव्यवेद की मुख्यता से उनों ने बताया है वह एक सिद्धांत शास्त्र के रहस्य को समझने के लिये अपूर्व कुजी है। मैं समझता हूं कि यह बात भाववेद मानने वाले विद्वानों के ध्यान में नहीं पाई होगो ? यदि भाई होती तो वे इस परखएडागम सिद्धांत शाखको पवेद के कथन से सर्वथा शून्य और केवल एक भाववेद का ही अंरा वर्णन करने वाला अधूरा नहीं बनाते? पर वे इस नवीन दृष्टिकोण को ध्यान पूर्वक पढ़ेंगे तो मुझे पाशा है कि वे पूर्ण रूप से उससे महमत हो जायगे। इसी प्रकार पानापाविकार में पर्यात पर्याप्त की मुख्यता से वर्णन है और उसमें भाववेद द्रव्यवेद दोनों का ही सम्गवेश हो जावा है। तथा सत्रों में द्रव्यवेद का नाम क्यों नहीं लिया गया है। फिर भी उसका कवन अवश्यम्भावी है, ये दोनों बातें भी बहुत अच्छे रूप में इस प्रन्थ में प्रगट की गई है। इन सब नवीन दृष्टिकोणों से तथा गम्भीर और स्फुट विवेचन से न्यायालहर जी की गवेषणा पूर्ण असाधारण विच और सिद्धांतमर्मज्ञता का परिचय भली भांति हो जाता है। दिगम्बर जैनधर्म की अक्षुल्य रक्षा बनी रहे यही पवित्र
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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