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________________ बताते हैं। इसी भाधार पर पटखएडागम के प्रथम भाग (जीवस्थान सत्यरूपणा) में १३वं सत्र में (जिसमें मानुषियों की पर्याप्त अवस्था कौन २ से गुणस्थानों में होती है इसका वर्णन है) संजद पर है, ऐसा कहते हैं, न्यायालङ्कार ५० मक्खनलाल जी शास्त्री का एवं उनके सहयोगी विद्वानों का यह कहना है, कि ६३वां सत्र योग मार्गणा और पयोति प्रकरण का है अतः बह द्रव्यवेद का ही प्रतिपादक है, इसलिये उसमें संजद पद किसी प्रकार नहीं हो सकता है, इसी मुत्रस यत्रियों के मादि के पांच गुणस्थान ही सिद्ध होते हैं। यह बात सूत्रकार के मत स्पष्ट हो जाती है। गोम्मटसार में भी मानुषियों के चौदह गुणस्थानों का कथन है। और इस शास्त्र का काफी समय से जैन समाज में पठनपाठन हो रहा है। परन्तु कभी किसी को यह कहने का साहस नहीं हुमा हैं कि 'दिगम्बर जैनागम ग्रन्थों में भी श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार द्रव्यत्रियों को मुक्ति का विधान है' और न किसी ने बाज तक यही कहा है कि इसमें द्रव्यवेद का वर्णन नहीं है। इसका एक मात्र कारण यह है कि उसी गोम्मटसार प्रन्थ में त्रियों के उत्तम सहनन का निषेध किया गया है, और यह गोम्मटसार अन्य पटखएडागम से ही बनाया गया है, पण्डित जी ने अपने इस गम्भीर प्रन्थ में युक्ति और मागम प्रमाणों से हो यह सिद्ध किया है कि एवं सत्र में संजद पद नहीं हो सकता है, वह बकाया है। विद्वानों को उनके इस सप्रमाण रहस्य पूर्ण कथन पर मनन करना चाहिये।
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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