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________________ अधिकारी ही नहीं ठहरते हैं। बस्तु । भाचार्य महाराज की सेवा में निवेदन इस प्रयको समाप्त करने से पहले हम विश्ववन्ध पूज्यपाद पारित्रपक्रवर्ती श्री १०८ पाचार्य महाराजको सेवामें यह निवेदन करना चाहते है कि यदि भाप सत्र में संजद पर के रहने से सिवाय कापात समझते हैं वो भापके पादेश से मापके नावपमें बनी हुई ताम्रपत्र कमेटी को सूचित कर तुरन ही उस वानपत्रकोपनगरा देव पिस में यह संजद पद खुदवा दिया गया है। यदि पापकी ऐसी इच्छा कि 'संजर पर का निकालना बापरयको फिर भी अभी पलता हुमा काम न का जाय, इस लिये बम पूरा होने पर कुछ वर्ष पोछे उसे हटा दिया जायगा' सब हमारा यह नम्र निवाल मापके परणों में है कि ऐसा विलंब सिी प्रकार भी उचित एवं गम होने की बात नहीं है। बरण एक विद्वान् विपरीत मिथ्या पात किसी को भून से गरि परमागम में मामिलर दी गई है तब उसे जानते हुए भीराने देने बनवाना में परीत्य होने की सम्भावना है। इसने चान्दोलन, विचार संघर्ष और सप्रमाण सरान करने पर भी परिचमीबह पद जुड़ा रस तो फिर जनता को समझ एवं संस्कार संविधोटि में हुए विना नही रेंगे। या काल होने से फिर पविक दलबन्दी का रूप बम हो जाने से सा हटाना भी दुःसाध्य होगा। और लोगों को ऐसा विचार भी होगा कि दिसंबर पर भागमवाषित एवं विपरीत सिद्धान्त का
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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