SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६५ संजद पद का विवाद सिद्धांत शास्त्र सम्बन्धी है, अत: इसके निर्णय का अधिकार परमपूज्य चारित्र पकवतों श्री १०८ पाचार्य शांतिसागर जी महाराज को ही है। कारण कि वे वर्तमान के समस साधुगण एवं प्राचार्य पर धारियों में मपिरि शिरोमणि है, इस बात को हम ही केले नहीं करते हैं कि समस्त विद्वत्पमाज, धनिक समाज एवं समस्त साधुवर्ग भी एक मत से कहता है। उनका विशिष्ट तपोषल, अगाध पारिहस्य, असाधारण विवेक, परमशांति, सिद्धांत शास्त्र रहस्यमता, एवं सर्वोपरि प्रभाव जैसा उसमें है वैसा वर्तमान साधु और दूसरे पाचायों में नहीं है। यह एक प्रत्यक्ष सिद्ध निर्णीत बातमतः अधिक कुछ भी इस विषय में नहीं लिखकर हम इतना ही लिख देना पर्याप्त समझते हैं कि भाचार्य शांतिसागर जी महाराज इस समय श्री भगवत्कुन्दकुन स्वामी हैं। अतः सनद पर का निर्णय देने के लिये परम भाचार्य शांतिसागर जी महाराज ही एक मात्र अधिकारी हैं। उनका दिया हुमा निर्णय भागम के अनुसार ही शेगा। दूसरे-यह कोई लौकिक व्यवहार सम्बन्धी बात नहीं है, लेन रेन पारिका कोई मापसी झगड़ा नहीं है, जिसका निर्णय गृहस्थ करें, और भाचार्य महाराज बीच में नहीं पा किन्तु यह बल शास्त्र सम्बन्धी निर्णय है। उसमें भी पर विज्ञान सत्र पर निर्णय देना है। गृहस्थों को वो उस सिद्धांव शास्त्र के पड़ने का भी अधिकार नहीं माने तो इसका निर्णय देने के
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy