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________________ 出 संस्कृत टीकाकार नेमिचन्द्र " द्रव्यकीयां" और केशव के गुरु अभषचन्द्र सैद्धान्ती 'द्रव्यमनुष्य स्त्रीयां' ऐसा करते है" इसीप्रकार - 'विगुण सत्तगुणा वा सम्बट्टा मासुसी पमाणादो। इस गाथा को देकर सोनी जी लिखते हैं कि "इस गाथा की टीका में मानुषी शब्द का चयें मनुष्यकी किया गया है यह मनुष्य स्त्री या मानुषी शब्द द्रव्य की है। क्योंकि सर्वार्थसिद्धि के देवों की संख्या द्रव्यमनुष्य की की संख्या से तिगुनी अथवा सातगुनी है ।" (दि० जैन सिद्धान्त दूपण पृष्ठ १५० ) यहां पर सोनी जी ने यह सब संख्या द्रव्यखयों की स्वयं स्वीकार की है। और गोम्मटसार को भी द्रव्यवेद का कथन करने वाला स्त्रीकार किया है। टीका को भी पूर्ण स्वीकार किया है। किन्तु चाज ने उक्त कथन से सर्वथा विपरीत कह रहे हैं। ऊपर के कथन में सोनी जी ने केशववर्णी की कन्नड़ टीका अनुसार संस्कृत टीकाकार नेमिचन्द्र को लिखा है परन्तु कम टीका के रचयिता केशवबर्फी नहीं हैं किन्तु भ० चामुदहराय जी हैं और उसी कन्नड़ टीका के अनुसार संस्कृत टीका के रचयिता केशवनय हैं। जैसा कि गोम्मटसार गोमसुत लिहणे गोमटर | ये जा कया देसी । सो गमो चिरकालं गामेण व बोर मसंखे ॥ इस गाथा से स्पष्ट है। सोनी जी ने केशववर्णों को कम्म टीका रचयिता बताया है वह गलत है। मस्तु ।
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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