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________________ १५३ चक्रवर्ती थे और उनको टोका भी केशब वर्णों की टीका से मिलनी है। टीकाकारों के इस परिचय से यह बात हरष्ट हो आती है कि मूल प्रम्प कौर उसकी टीका में कोई अन्तर नहीं है, चौथी टीका पण्डित प्रबर टोडरमल जी की हिन्दी अनुवाद रूप है। उन्होंने रुस्कृत टीका का ही हिन्दी अनुवाद किया है इसलिये उसमें भ कोई विशेष सम्भव नहीं है। इसके सिया एक बात यह भी है कि ये सभी टीकाकार महा विद्वान थे। सिद्धांत शास्त्रों के पूरा पार थे। और जिन शास्त्रों की उन्होंने टोका रबी है उनके अतस्तस्य को मनन कर चुके थे तो उनकी टीका करने के वे अधिकारी बने थे। जहां मानुषी शब्द का अर्थ भाववेद है वहां भावरूप और जहां उसका अर्थ क्रयवेद है वहां स्त्री उन्होंने किया है। इसजिये मूल ग्रन्थ में कबल मानुषी पद होने पर भी हरष्टता के जिये टीकाकारों ने द्रव्यस्त्री अर्थ समझ कर ही किया है। वह टीकाकारों का किया हुआ नहीं समझकर मूल ग्रन्थ का हो समझना चाहिये । 'वक्तुः प्रमाणु- तू वनप्रमाणम' इस नीति पर सोनी जी ध्यान देंगे ऐसी आशा है। टीकाकारों की निजी कल्पना कहने वाले एवं उनकी भूल बताने वाले दूसरे विद्वान भी इस विवेचन पर लक्ष्य देंगे "टीकाकारों ने ऐसा लिखा है मूस में यह बात नहीं है" इस प्रकार की बातें हमें सहन नहीं हुई हैं उस प्रकार के कथन से टीका ग्रन्थों में श्रद्धा की कमी एवं उलटी समझ हो सकती है इस लिये इतना लिखना हमने आवश्यक · समझा ।
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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