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________________ नेमिचन्द्र सिद्धांत पावर्ती ने चामुगएराय की समस्त टीकाको अवश्य ध्यान से देखा होगा। और यह भी परिचय मिलता है कि मितमा मूल अन्य प्राचार्य महाराज बनाते होंगे उनीही उसकी टीका चामुबाराय बना देते होंगे। और वह तिदिन प्राचार्य महाराजको रष्टि में पाती होगी। इसका प्रमाण यही है कि पाचार्य महाराज ने उस कर्णाटक वृत्ति टीका को देखकर की गोम्मटसार को समाप्ति में मुण्डरायी उस टीका का उल्लेख करमशान दिया। इससे बहुत स्पष्ट हो जात है कि मूल न्य का जो अभिप्राय है उसी को चामुण्डराय ने बुलामा करा है। यदि उनकी टोका मूल प्रथ से विरुद्ध होती और भाचार्य महाराज का अभिप्राय मानुषी पद का अर्थ भावलो होता और चामुंडराय जी, टीका में द्रव्यकी करते तो बाचा नेमिचन्द्र सिद्धांत पक्रवर्ती से पाश्य सुधरवा देते। इतनी ही न विन्तु भाचार्य महाराज से निर्णय करके ही उन्हों ने हर एक बात नही होगी। क्योंकि चामुंडराय जी कोई स्वतन्त्र टोकाकार नहीं थे बिन्तु मा. महाराज के शिष्य थे अत: जो मूलपन्योटीशासी हप में टीशहै। तथा उस टोपा से केशववर्णी ने सात टीका बनाई है। बागमुण्डराय की कर्णाटीवृत्ति की संस्कन टोका रापीहत) अनुवाद है तब उसको भी वही प्रामाणिकता है गोवामुंडराय की टीम की है। तीसरी संस्कृत टीका मायोपिनी नाम की वह श्रीमत अभयपन सिद्धांत काही की पाई है। इस कारपिता श्रीअभयपद्रवी fasia
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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