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________________ १५० टीकाकार ने द्रव्यकी या द्रव्यमनुष्यणी लिखा है तो फिर भी उसके होते हुये भाप उस प्रकरण को द्रव्य प्रकरण क्यों नहीं मानोगे ? क्या यह कोई बच्चों की बात चीत है कि 'हम तो नहीं मानेंगे' यह शाखों के प्रमाण की बात है। इसी पर द्रव्यकी को मोक्ष का निषेध एवं वस्तु निर्णय होता है। इसी की मान्यता में सम्यग्दर्शन की आत्मस्थ गवेषणा की जाती है। इसी की मन्यत' धमान्यता में मुक्ति व संसार कारणों का भाव होता है 1 - टीकाकारों की प्रामाणिकता और महता - जिन टीकाकारों ने पटखण्डागम सिद्धांत शास्त्र, गोम्मटसार जीवकांड तथा गोम्मटसार कर्मकांड जैस सिद्धांत रहस्य से परिपूर्ण जीवस्थान, कर्मप्रकृति प्ररूपक महान गम्भीर एवं अत्यंत गहन प्रत्यों की साधिकार टीकायें की हैं उनकी प्रामाणिकता और महत्ता कितनी और कैसी है इसी बात का दिग्दर्शन करा देना भी आवश्यक हो गया है । भगवद्वीरसेन स्वामी ने षटख एडागम सूत्रों की टीका की है उनकी प्रामाणिकता और महत्ता अगाध है, उनके विषय में सोनी जी का कोई भी आक्षेप नहीं है । परन्तु गोम्पटसार के टीकाकारों पर अवश्य आक्षेप है, इसजिये उनके विषय में थोड़ा सा दिग्दर्शन यहां कराया जाता है। गोम्मटसार के चार टीकाकार है- पहले टीकाकार श्रीमत चामुण्डरायो, दूसरे केशववर्णी, तीसरे माचार्य अभयचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती, और चौथे पावडर टोडरमल जी । चावतराव जी आचार्य नेमिष सिद्धांत चक्रवर्ती के
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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