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________________ १४८ भोंने 'ध्यक्षीणां' भारि हासे निखाहै तो गोम्मटसार टोपकार का कथन मूल गोम्मटसार से भी विरुद्ध मोर धवला से भी विरुद्ध है। इस पक्षपात की भी कोई भाव प्रकरण मानने पर दोनों में चोर मन में भी कोई विरोध नहीं किन्तु द्रव्य प्रकरण मानने पर पृगविराध। विपित्री पूर्वापर विरुद्ध साधन एवं समर्थन: परनु गाम्नटनार मृल में की और उसकी वीक में भी डव्य • far एवं यत्री अदि का विधान स्पष्ट लिant जंसा कि इम ऊपर उद्धरण देकर खुलासा कर चुक हैं। सो अवस्था में सोनी जी लखानुसार मन में भी पटखण्डागम से विशेष रंगा। और टीकाकार का भी धवला से विरोध ठहरंगा। पर पटखएडागम गोम्मटसार बार धवला टीका तथा गोमटसार का, इन सबों में कहीं कोई विरोध नहीं है, प्रकरणों में यथास्थान भोर यथासम्भव भयर मार भाव का निकरण भी सबों में । धवलाकार ने यदि मानुपी का अर्थ मानुपी ही लिखा और गोमटसार के टीकाकार ने मानुषी का अर्थ द्रव्यबी भी निखा? तोगेनों में कोई विरोध नही । । यदि धवनाकार उस प्रकरण में भाव मानुषी जित देते या द्रव्यमानुषी का निषेध कर देते तर तो वास्तव में विरोध ठहरवा सो कहीं नहीं है। जहां जेसा प्रकरण बांसा द्रश्य या मालिका गया। इसी प्रकार गोम्नटसार मन में जहां व्यस्त्री राम नहीं भी लिखा और टीमकार ने जिस दिया है वो भी प्रकरण गत बड़ी अर्थ है। टीकाकार
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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