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________________ कर्मर की इस नीचे की गाथा हो जाता है अन्तिमतियाणणस्पुरको पुकम्मभूमिमहिला । बारिमतिगमहणणं णस्थिस्य जि ॥ गो० १० गा० ३२ इस गापा पनुपार कर्मभूमिको व्यत्रियों पक्षिम तीन संहननों का ही उपय होना, प्रादि के तीन सहनन उनके नहीं होते है । ऐसा जिनेय ने कहा है। इस गोम्मटसार के प्रमाण में तीन बान सिद्ध होती है। १-इम्यसी मोक्ष नही जा सकती। २-गोमटमार में भारत का कथन है यह बात बारित हो जाती है। क्योंकि हम गाथा में द्रव्यमी महिना परस्पष्ट उल्लेख मिलता है।३ उच्यत्री की मुक्ति के निषेध कथन को अनादिता मिद्ध होता है। काकि श्री नेमिन्द्र सिद्धांत कार्ती कहते हैं कि व्यको पादिर तीन संहनन नहीं होते हैं या बान जिनेन्द्रव ने कही है। और मुक्ति की प्राप्ति उत्तम संहनन ही होती सा सूत्र हैअचमसंहननायकापषितानियो ध्यानमाहूतान (तस्वार्थसत्र) शुक्न ध्यान उत्तम संहनन वालों की ही होता है और शुक्न ध्यान विना मुकि नही हो सकती है। यषियों उत्तम संहनन होने बसथा निपेय है । इसीलिये सवेश प्रतिपादित परमरा से मागम में दम्ब बी को मुक्ति का निपंध है। इससे एक ही मूब अन्य गोम्मटसार में द्रव्यत्री के मोड जाने पनिष सिद्ध होता है। जैसे वस्त्रार्थ सूत्र दरामयाब
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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