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________________ __श्री सिद्धचक्र विधान [७१ अति वास विषयन वासनायुत मलय शील सु भावहीं। अरु चन्दनादि सुगन्ध द्रव्य मनोज्ञ प्राशुक लावहीं॥यह.॥ ____ॐ ह्रीं श्री सिद्धपरमेष्ठिने २५६ गुण सहिताय बिराजमान श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहमत्तहेव अवग्गहणं अगुरुलघुअव्यावाहं संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ॥२॥ परिणाम धवल सुवर्ण अक्षत मलिन मन न लगावहीं। तिस सार अक्षत अखय स्वच्छ सुवास पुञ्च बनावहीं॥यह.॥ ॐ ह्रीं श्री सिद्धपरमेष्ठिने २५६ गुण सहिताय बिराजमान श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहमत्तहेव अवग्गहणं अगुरुलघुअव्वावाहं अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ॥३॥ मन पाग. भत्यनुराग आनन्द तान माल पुरावहीं। तिस भाग कुसुम सुहाग अर सुर नागबास सुलावहीं यह.॥ ॐ ह्रीं श्री सिद्धपरमेष्ठिने २५६ गुण सहिताय बिराजमान श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहमत्तहेव अवग्गहणं अगुरुलघुअव्वावाहं कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा॥४॥ जिन भक्ति रस में तृप्तता मन आन स्वाद न चावहीं। अन्तर चरू बाहिज मनोहर रसिक नेवज लावहीं॥ यह.॥ . ॐ ह्रीं श्री सिद्धपरमेष्ठिने २५६ गुण सहिताय बिराजमान श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहमत्तहेव अवग्गहणं अगुरुलघुअव्वावाहं क्षुधारोगविनाशनायं नैवेद्यं निर्वपामीति ,स्वाहा ॥५॥ सरधान दीप प्रदीप्त अन्तर मोह तिमिर नशावहीं। मणिदीप जगमग ज्योति तेज सुभास भेंट धरावहीं॥यह.॥ ___ ॐ ह्रीं श्री सिद्धपरमेष्ठिने २५६ गुण सहिताय बिराजमान श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहमत्तहेव अवग्गहणं अगुरुलघुअव्वावाहं मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥६॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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