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________________ ७०] श्री सिद्धचक्र विधान श्री षष्ठी पूजा २५६ गुण सहित छप्पय छन्द ऊरध अधो सुरेफ बिन्दु हंकार बिराजे। अकारादि स्वर लिप्तकर्णिका अन्त सु छाजे॥ वर्गन पूरित वसुदल अम्बुज तत्त्व सन्धिधर। अग्रभाग में मन्त्र अनाहत सोहत अतिवर॥ फुनि अन्त हों बेड्यो परम, सुर ध्यावत अरिनागको। है केहरिसम पूजन निमित, सिद्धचक्र मंगल करो॥१॥ ह्रीं श्री सिद्धपरमेष्ठिने २५६ गुण सहित बिराजमान अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं। . दोहा- सूक्ष्मादिक गुण सहित हैं, कर्म रहित नीरोग। ..सकल सिद्ध सो थाप हूँ, मिटें उपद्रव योग॥२॥ इति यन्त्र स्थापनं अथाष्टकं, गीता छन्द अति नम्रता तिहुँ योग में जिन भक्ति निर्मल भावहीं। यह गुप्त जल प्रत्यक्ष निर्मल सलिल तीरथ लावहीं॥ यह उभय द्रव्य संयोग त्रिभुवन पूज्य पूज रचावहीं। द्वै अर्द्धशत षट् अधिक नाम उचार विरद सु गावहीं॥ ॐ ह्रीं श्री सिद्धपरमेष्ठिने २५६ गुण सहिताय बिराजमान श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहमत्तहेव अवग्गहणं अगुरुलघुअव्वावाहं जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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