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________________ श्री सिद्धचक्र विधान [३७ हस्त पादादिक नखकेश में, सर्व औषधि हैं सब देश में। औषधी यह ऋद्धि प्रभावना, भये सिद्ध नमत सुख पावना॥३६॥ ॐ ह्रीं अर्ह सर्वोसियऔषधिरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अयं ॥३६ ।। __ अडिल्ल मन सम्बन्धी वीर्य बढ़े अतिशय महा, एक महूरत अन्तर श्रुत चिंतन लहा। मनोबली यह ऋद्धि भई सुखदाइ जू, भये सिद्ध सुखदाय जजू तिन पायजू॥३७॥ ॐ ह्रीं अहँ मनोबलीरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥३७॥ भिन्न-भिन्न अति सुद्ध उच्च स्वर उच्चरै, __ एक महूरत अन्तर श्रुत वर्णन करें। वचनबली यह ऋद्धि भई सुखदाय जू, भये सिद्ध सुखदाय जजू तिन पांय जू॥३८॥ ॐ ह्रीं अर्ह वचनबलरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥३८॥ खड्गासन इक अंग मासछै मास लों, - अचलरूप थिर हैं छिनक खेदित न हों। कायबली यह ऋद्धि भई सुखदाय जू, भये सिद्ध सुखदाय जजू तिन पांय जू॥३९॥ ॐ ह्रीं अर्ह कायबलरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अयं ॥३९॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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