SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सिद्धचक्र विधान [३३ बहु विधि अणिमादिक रिद्ध जू, तप प्रबाव भई तिन सिद्ध जू । निष्प्रयोजन निजपद लीन है, नमूं सिद्ध भये स्वाधीन है ॥१८॥ ॐ ह्रीं अहँ विवर्णरिद्धिजिनसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥१८॥ भूमि जल तंतु जिया ना हरै, . नमूं ते मुनि शिव कामिनी वरैं। नेक नहीं बाधा परिहार हो, , नमूं सिद्ध सभी सुखकार हो॥१९॥ - ॐ ह्रीं अहँ विजाहरणरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥१९॥ जंघपर दो हाथ लगावहीं, . अन्तरीक्ष पवनवत जावहीं। पाय ऋद्धि महामुनि चारणी, - यथायोग्य विशुद्ध विहारिणी॥२०॥ .. ॐ ह्रीं अहँ चारणरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥२०॥ खग समान चलैं आकाश में, लीन नित निज धर्म प्रकाश में। . शुद्ध चरण करि निज सिद्धता, पाइयो हम नमन करें यथा ॥२१॥ ॐ ह्रीं अर्ह आकाशगामिनीरिद्धिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥२१॥ वाद विद्या फुरत प्रमानही, वज़सम परमतगिरि हानही।
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy