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________________ श्री सिद्धचक्र विधान [१९ : आप श्राप कर पुष्पचाप धर मम डर शरण उपाई। यह निश्चय करि पुष्प भेटं धरि मांगूवर शिवराई ।तुम पूजोरे. ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिभ्यो नमः श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम त्तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह बतीसगुणसंयुक्तेभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥४॥ चरुवर प्रचुर क्षुधा नहीं मेटत, पूर परौ इन ताई। भेंट करत तुम इनहूँ न भेटू, रहूँ चिरकालअघाई।तुम पूजोरे. ___ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिभ्यो नमः श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह बतीसगुणसंयुक्तेभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥५॥ दिव्य रत्न इस देश काल में, कहै कौन हैं नाहीं। तुम पद भेटें दीप प्रगट यह, चिन्तामणि पद पाई।तुम पूजोरे. ___ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिभ्यो नमः श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह बतीसगुणसंयुक्तेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥६॥ धूप हुताशन वासन में धर, दसदिस वास वसाई। तुमपदपूजतयाविधिवसुविधि, ईंधनजरहोछाई।तुमपूजोरे. ___ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिभ्यो नमः श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम त्तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह बतीसगुणसंयुक्तेभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥७॥ सर्वोत्तम फल द्रव्य ठान मन, पूजू हूँ तुम पाई। जासौं जजें मुक्तिपद पइये, सर्वोत्तम फलदाई ।तुम पूजोरे. ___ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिने नमः श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम त्तहे व अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह बतीसगुणसंयुक्तेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ॥८॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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