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________________ १८] श्री सिद्धचक्र विधान दोहा . सूक्ष्मादि गुण रहित हैं, कर्म रहित नीरोग। सकल सिद्ध सो थापहूँ, मिटें उपद्रव योग ॥२॥ इति यन्त्र स्थापनं अथाष्टकं तुम पूजोरे भाई, सिद्धचक्रबत्तीसगुण, तुम पूजोरे भाई। भवत्रासित आकुलित रहैं, भवि कठिन मिटन दुःखताई॥ विमलचरणतुमसलिलधारदे, पायोसहज उपाई॥तुम पुजोरे. ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिने नमः श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम तहे व अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह बतीसगुणसंयुक्तेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥ जगवन्दन परसत पदचन्दन, महाभाग उपजाई। हरिहरआदिलोकवर उत्तम, करधरशीशचढ़ाई। तुम पूजोरे. ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिने नमः श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम तहे व अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह बतीसगुणसंयुक्तेभ्यो संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ॥२॥ शिवनायक पूजन लाडक है, यह महिमा अधिकाई। अक्षयपद दायक अक्षत यह, सांचों नाम धराई ॥ पूजोरे. ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिने नमः श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम तहे व अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह बतीसगुणसंयुक्तेभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ॥३॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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